Wo 3 Din -(Those three days) - DOORI KA EHSAAS

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Thursday, July 19, 2018

Wo 3 Din -(Those three days)


  1. ‌रात काफी हो चुकी थी और अँधेरा चारो ओर पसरा पड़ा था। भला कैसे भूल सकता हूँ मैं उस रात को, अमावस की रात थी वो बहुत ही भयानक। घर पहुँचने की जल्दी थी क्योंकि कल सुबह ऑफिस के काम से बैंगलौर जाना था। सुबह 11 बजे की फ्लाइट थी मिस नही कर सकता था, क्योंकि उसी पर मेरा प्रमोसन जो टिका हुआ था। कार सड़क पर तूफ़ान की तरह चल रही थी। रोड खाली था तो मैं भी बेफिक्र था। रेड़ियो पर गाने ही सुन रहा था कि अचानक से एक औरत मेरे कार के सामने आ गयी। मैंने जल्दी से ब्रेक लगाया पर कार की स्पीड़ इतनी ज़्यादा थी कि वो कब मेरी गाड़ी से टकरा गई पता ही नही चला। मैंने सीट बेल्ट निकाली, रेडियो बंद किया और जैसे ही कार का दरवाजा खोला.......दर्द से तड़पती हुई उस औरत की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। जब तक मैं उसके पास पहुँचा वो बेहोंश हो चुकी थी।उसकी ऐसी हालत देख कर मेरे माथे से पसीने छूटने लगे और मैं इतना डर गया कि तुरँत गाडी में बैठा और घर की तरफ निकल गया। पूरे रास्ते मेरे कानों में उस औरत की चीख सुनाई देती और आँखों के सामने उसका चेहरा नज़र आता। घर पर पहुँचा तो बीवी ने पूछा -"क्या हुआ?" और मेरी जुबान ने मेरा साथ छोड़ दिया बार-बार उसके पूछने पर मेरी लड़खड़ाती हुई ज़ुबान से सारा सच बहार आ गया। उसने मुझे बड़ी ही शांति से समझाया कि जो गलती मैंने की है उसके कैसे सुधारु। एक्सीडेंट घर से कुछ दूर की दूरी पर ही हुआ था तो हम दोनों जल्दी से वहाँ पर गए क्योंकि मेरी कार चलाने की हिम्मत नही हो रही थी तो, कार पत्नी ने चलाया और उसने घर से निकलते वक्त ही एम्बुलेंस को कॉल कर दिया। वहाँ पहुँचे तो औरत वैसे ही सड़क पर पड़ी मिली। हिम्मत कर के उसका हाँथ पकड़ा तो देखा नब्ज़ चल रही है। एम्बुलेंस भी आ चुका था तो उसको जल्दी से हॉस्पिटल ले गए और उसका इलाज कराया। इन सब के बीच मन में बस एक ही बात चल रही थी कि भगवान बचा लेना उस महिला को, ना जाने कौन-कौन है उसके परिवार में, कही सब परेशान ना हो रहे हो वो अब तक घर क्यों नही लौटी....और ना जाने क्या कुछ। यही सब ख्याल मेरे आत्माँ को कचोटे जा रहे थे और मेरी नजरे उस ऑपरेशन थीयेटर के दरवाज़े के ऊपर लगी लाल बत्ती को घूरे जा रही थी कि तभी अचानक उस ऑपरेश थीयेटर का दरवाज़ा खुलता है और लड़खड़ाते हुए शब्दों में डॉक्टर से  यही पूछता हूँ- वोव्व्व् ठीक तो हैं ना....। डॉक्टर की हाँ सुन कर ना जाने मेरे दिल से कितने ग्लानि के बोझ उतर गए। पर अभी भी इतनी हिम्मत ना थी मुझमे की उस महिला के सामने जा सकूँ। मैं मीटिंग कैंसिल करने के लिए बॉस को फ़ोन करने वाला था कि मेरी पत्नी में मुझे समझाया कि, आप मीटिंग के लिए जाओ और जब तक आप वापिस नहीं आ जाते मैं उस महिला का ख़्याल रखूँगी। और पत्नी की बात सुन कर मुझे थोड़ा ही सही पर सुकूं मिला। मैं जल्दी से ही काम खत्म कर के रात के 8 बजे तक वापिस आ गया। तब तक उस महिला को भी होश आ चूका था। उनके होश में आने के बाद पता चला कि वो वही पास के किसी आश्रम में रहती है और अनाथ बच्चो को पालती हैं। उनके बारे में सब कुछ जान कर अब मेरे मन में खुद के लिए और भी घृणा की भावना जागने लगी। कि अगर मैं वापिस नही आता अपनी पत्नी के कहने पर, तो ना जाने कितने बच्चे आज फिर से अनाथ हो जाते। अब मुझे समझ आ चुका था ग़लतियों को छिपाने से अच्छा है कि उनको सुधारा जाएँ। 3 दिन हो चुके थे और डॉक्टर ने उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। उन्होंने जाते हुए मेरा और मेरी पत्नी का शुक्रिया अदा किया। वो तो चली गयी पर मेरे अंदर एक बदलाव सा आ चुका था। मैं इन 3 दिन और 3 रोतों में बहुत कुछ सीख चूका था। और मैंने ये संकल्प किया कि अब ऐसा कभी नही करूँगा। वो आत्मग्लानि मेरे अंदर एक अलग ही परिवर्तन ला चुके थे।



©® Shalini Gupta
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