आज फिर खाने की टेबल पर सब साथ बैठे हैं। सबकी थाली खाने से भरी है, पर गले से एक निवाला ना उतरा है किसी के। अचानक कमरे से रोने की आवाज आती है, कमरे में जाने के बाद पता चलता है कि मानस (12 वर्षीय बालक) बेड से नीचे गिर गया है जो कोशिश तो कर रहा है पर बार-बार बेड पर चढ़ने में असफ़ल हो रहा है। क्योंकि वो पोलियो से पीड़ित है। माँ- बाप का एकमात्र सहारा होने की वजह से वो और भी ज़्यादा चिंता में हैं कि जब तक हम जिन्दा है तब तक तो ठीक है पर जब हम भी ना रहेंगे तो मानस को कौन संभालेगा? घर में सबकी चिंता का विषय है "मानस"। ना जाने कितने डॉक्टर्स को दिखाया। जिसने जहाँ सलाह दी, वहाँ गए कोई मंदिर कोई दरगाह कोई गुरुद्वारा ना छोड़ा। पंडित, ओझा, सोखा सब को दिखाया, जहाँ कही उम्मीद की किरण दिख जाती उसी राह पर चल देते इस उम्मीद से की शायद चमत्कार हो जाये पर कोई फायदा नही हुआ। ये शायद मेरे गुनाहों की वो सजा थी जो मेरे बच्चे को मिल रही थी। याद है मुझे आज भी जब मैं घर का कुछ समान लेने बाज़ार गयी थी और वहाँ पर एक औरत अपने अपाहिज बच्चे को गोद में ले कर जा रही थी जिसके पैरो में मिटटी लगी थी और वो मिट्टी मेरे कपड़ों मे आ लगी। और मैंने उसे अपने इतने महँगे साड़ी को ख़राब करने पर बहुत ही खरी-खोटी सुना दिया था। और गुस्से के वसीभूत होकर बीच बाजार मे उसकी और उनके बेटे की दशा की खिल्लियाँ भी उड़ाई। इतना सब कुछ कह दिया पर, उस महिला ने कुछ ना कहा और रोती हुई चली गयी।
पर कहते है ना ये वक़्त एक सा नही रहता, वक़्त की लाठी में आवाज नही होता, और जब पड़ती है तो अच्छे अच्छो के होश ठिकाने आ जाते है।
आज मेरे बेटे की दशा भी वही है जो उस औरत के बेटे की थी। अब जब मैं भी उसी परिस्थिति में हूँ तो समझ आ रहा है कि उस माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी जब मैंने उसका भरे बाजार में तमाशा बनाया था। शायद ये उसी के आंशुओ की सजा है जो मुझे इस तरह मिल रही हैं। अब अफ़सोस होता है अपने किये गए बर्ताव पर। काश मैंने ऐसा ना किया होता तो शायद.....शायद आज मुझे ये दिन ना देखना पड़ता। बड़े बुजुर्गों ने सही कहा है कभी किसी की परिस्थिति पर उपहास नही करना चाहिए। और ये बात अब अच्छे से ज़हन में बैठ चुकी है।
"कपडे पर लगा वो दाग तो धुल गया पर कीचड़ की छीटें क़िस्मत पर आ पड़ी है जो कभी नही धुल सकती।"
©® Shalini Gupta
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