Sahara - DOORI KA EHSAAS

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Tuesday, December 18, 2018

Sahara

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ना जाने आज क्यों बड़ी उलझन सी महसूस हो रही है। बिस्तर से उठा और घड़ी की तरफ़ देखा अभी रात के 1:22 मिनट हो रहे थे। नींद आँखों से ओझल हो चुकी थी तो खिड़की के पास यूँ ही जा कर खड़ा हो गया और उन अँधेरी गलियों में ना जाने मेरी निगाहें क्या तलाश करने लगी। तभी मेरी नज़र एक ठेले पर पड़ी जिसके नीचे एक 8-9 साल का मासूम सा बच्चा ठिठुरा पड़ा हुआ था। वो कोई और नही सामने की दूकान पर काम करने वाला राजू था। वो खुद को ठंडी से बचाने के लिए कभी अख़बार के के पन्नो का सहारा लेता तो कभी हलवाई की भट्टी के पास चुपके से जाता क्योंकि सोहन हलवाई बड़ा ही निर्दयी है उसने एक बार तो उस बच्चे को भट्टी के कोयले से जला भी दिया था, हालाँकि मोहल्ले वालों ने सोहन हलवाई को बहुत बुरा-भला भी कहा था पर वो अपनी आदत से बाज ना आता। राजू कहाँ से आया है, कौन है किसी को पता ना था। पर वह था बड़ा मेहनती और साथ ही खुद्दार। तभी तो उसने इतनी छोटी सी उम्र में काम कर के खाना चाहा किसी से भीख नही माँगी। धीरे-धीरे हवाएं और सर्द होने लगी मानों ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सर्दी बढ़ने वाली है, खिड़की से हवाएं तेजी से अंदर आ रही थी कि निर्मला जी ने आवाज़ दिया- वकील साहब खिड़की बंद कर दीजिए हवाएं तेज है आपको ठण्ड लग जाएगी, साँल तो अपने ओढ़ा ही नही है, वैसे कल कचहरी नही जाना क्या  जो इतनी रात तक जग रहे हो?
वकील साहब खिड़की बंद करते हुए- जाना तो हैं....और एक लंबी सांस भरी और बिस्तर की तरफ आ गए। उन्होंने अपनी पत्नी का हाँथ बड़े ही भावुकता से पकड़ा और रुंधे हुए गले से बोले की क्या हम राजू को गोद ले सकते है? तुम तो जानती जो निर्मला हमारी शादी के 6 साल गुज़र चुके हैं और कोई उम्मीद भी नही हैं बच्चे की। हमें जिस तरह एक बच्चे की जरुरत है उसी तरह राजू को माँ और बाप की। हम एक दूसरे की कमी को अच्छी तरह से मिटा सकते हैं और तुम तो जानती हो राजू को कि वह कितना प्यारा बच्चा है। और कही और से बच्चा लेने से अच्छा है हम उसे ही गोद ले ले। वक़ील साहब मैं भी कई दिन से ये बात कहना चाहती थी आपसे पर मुझे डर था कि कही आप बुरा ना मान जाओ इसलिए चुप थी। और दोनों उसी वक़्त राजू को घर में ले कर आते है और सुबह-सुबह वक़ील बाबू क़ानूनी तौर पर राजू को अपना बना लेते है। आज तो पूरे मोहल्ले में मिठाईया बट रही थी सब वक़ील बाबू के इस फैसले की बड़ी ही सराहना कर रहे थे। और करे भी क्यों न आख़िर उन्होंने काम ही ऐसा किया था। आज राजू को एक आसरा मिला तो वक़ील बाबू और निर्मला को भी एक सहारा मिला गया।

©® Shalini Gupta
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