हाँ पता है मैं थोडी मतलबी सी हूँ। आपके पास तब ही आती हूँ जब मुझे कुछ चाहिए होता हैं। माँगना इंसान की तो फितरत में ही मौजूद होता है हाँ वो बात अलग है कि अलग- अलग उम्र में ख्वाइशें भी अलग-अलग होती हैं। जब बच्चे होते है तो खिलौने, चॉकलेट, मम्मी- पापा की डांट से बचने के लिये आपके सामने हाँथ फैला देते हैं। और जब होश संभालों तो एग्जाम्स में अच्छे नम्बर और लव-सव के मैटर इसके लिए हाँथ फैला देते है, थोड़े से आगे बड़े तो जॉब और बिज़नेस का टेंसन। मैंने भी माँग की है इन सब की आप से। इन सब में एक चीज की हमेशा ज़रूरत पड़ती है वो है "सुकून"।
अब जिंदगी के उस मोड़ पर हूँ जहाँ ये बात अच्छी तरह समझ लिया है कि- अगर अपने मन का हो मिले तो अच्छा है पर अगर मन का ना मिले तो और भी अच्छा है, क्योंकि शायद हमारी किस्मत में उससे भी बेहतर कुछ लिखा हो।"
अब भी हाँथ उठते है तेरे सामने मेरे ईश्वर, पर ये हाँथ अब कुछ माँगने के लिए नही बल्कि, जो कुछ भी अपने दिया है उसका शुक्रिया अदा करने के लिए। मैं बार-बार आपके पास आऊँगी क्योंकि जो सुकून आपकी शरण में आ कर पाया (मंदिर आ कर)वो कही नही मिल पाया। बस इतनी की अरदास है आप हमेशा साथ देना मेरा।
©® Shalini Gupta
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