खिड़कियों से आती बारिश की बूँदों के साथ जब सर्द हवाओं ने जब मेरे चेहरे को छुआ तो पता चला की बारिश हो रही है, हाँ वही बारिश जो तुमको बहुत पसंद थी। और तुम तो मेरी ज़िन्दगी में बारिश के मौसम की वो बूँद थी जो रूह तलक भिगा दे।
तुम्हारे होने का एहसास मेरी ज़िन्दगी की खूबसूरती में चार चाँद लगाते थे। कभी जम के बरसी हो तो कभी इक-इक बूँद के लिए तरसा दिया हैं तुमने। मुझे आज भी याद है जब बारिश देख कर तुम इतना खुश हो जाया करती थी और इक मासूम से बच्चे की तरह बारिश में तब तक भीगती थी जब तक की बारिश बंद ना हो जाये और जब कभी मैं बारिश में भीगने की बात करता तो मुझे आँखे दिखती क्योंकि तुम जानती थी मुझे ज़ुखाम जल्दी से हो जाता है। कितनी परवाह करती थी मेरी पर फिर भी मुझे अच्छा महसूस हो मैं भी बारिश का मज़ा ले सकू इसके लिए तुमने भी अच्छा उपाय सोच रखा था खुद बारिश की जो बूँदे तुम्हारे जुल्फों में कैद हो जाती उनको तुम मेरे चेहरे पर छिड़क देती
उफ्फ्फ..... ऐसा लगता जैसे तुम्हारे केश ना बल्कि कोई बादल हो और वो बादल सिर्फ मुझे भीगने के लिए बने हो। आज जब भी बारिश होती है भीग लेता हूँ पर वो बूँदे अब मेरे रूह को वो सुकूं नही देती। यूँ तो मेरी जिंदगी में तुम्हारे जाने के बाद हर मौसम बारिश के मौसम जैसा ही होता है बस बादल की जगह मेरी आँखें बरसती हैं और भीगता भी मैं ही हूँ। तुमको बारिश माना पर तुम मौसम निकली जो वक़्त के साथ बदल जाया करता है, पर वक़्त में एक खास बात होती है कि वो वापिस मुड़ कर आती है ज़रूर, पर मौसम की ये खूबी मैंने तुम में नही पाया। आज भी यही सोच कर भीग जाया करता हूँ की शायद तुम आओ और वैसे ही मुझे मना करो भीगने से और फिर अपनी काले जुल्फों में कैद बारिश की बूँदों को आज़ाद कर दो मेरे चेहरे पर, वो बूँद मेरे रूह तक पहुँच कर सुकून दे सके मुझे....पर अफ़सोस तुम वो मानसून हो जो बरसती तो है पर अब मुझ पर नही। जब कभी बारिश होती है तो बस यही याद आता है.....
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है।
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है।।
तुम्हारे होने का एहसास मेरी ज़िन्दगी की खूबसूरती में चार चाँद लगाते थे। कभी जम के बरसी हो तो कभी इक-इक बूँद के लिए तरसा दिया हैं तुमने। मुझे आज भी याद है जब बारिश देख कर तुम इतना खुश हो जाया करती थी और इक मासूम से बच्चे की तरह बारिश में तब तक भीगती थी जब तक की बारिश बंद ना हो जाये और जब कभी मैं बारिश में भीगने की बात करता तो मुझे आँखे दिखती क्योंकि तुम जानती थी मुझे ज़ुखाम जल्दी से हो जाता है। कितनी परवाह करती थी मेरी पर फिर भी मुझे अच्छा महसूस हो मैं भी बारिश का मज़ा ले सकू इसके लिए तुमने भी अच्छा उपाय सोच रखा था खुद बारिश की जो बूँदे तुम्हारे जुल्फों में कैद हो जाती उनको तुम मेरे चेहरे पर छिड़क देती
उफ्फ्फ..... ऐसा लगता जैसे तुम्हारे केश ना बल्कि कोई बादल हो और वो बादल सिर्फ मुझे भीगने के लिए बने हो। आज जब भी बारिश होती है भीग लेता हूँ पर वो बूँदे अब मेरे रूह को वो सुकूं नही देती। यूँ तो मेरी जिंदगी में तुम्हारे जाने के बाद हर मौसम बारिश के मौसम जैसा ही होता है बस बादल की जगह मेरी आँखें बरसती हैं और भीगता भी मैं ही हूँ। तुमको बारिश माना पर तुम मौसम निकली जो वक़्त के साथ बदल जाया करता है, पर वक़्त में एक खास बात होती है कि वो वापिस मुड़ कर आती है ज़रूर, पर मौसम की ये खूबी मैंने तुम में नही पाया। आज भी यही सोच कर भीग जाया करता हूँ की शायद तुम आओ और वैसे ही मुझे मना करो भीगने से और फिर अपनी काले जुल्फों में कैद बारिश की बूँदों को आज़ाद कर दो मेरे चेहरे पर, वो बूँद मेरे रूह तक पहुँच कर सुकून दे सके मुझे....पर अफ़सोस तुम वो मानसून हो जो बरसती तो है पर अब मुझ पर नही। जब कभी बारिश होती है तो बस यही याद आता है.....
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है।
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है।।
Blog-Doori Ka Ehsaas
©®- Shalini Gupta
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