"टुकड़े कागज़ के"
इस भीड़- भाड़ की दुनिया में,मची है भागम-भाग।
ना जाने क्यों कागज़ के पीछे, भाग रहा इंसान।।
अपनों से ही वो रेस लगाये, रख ईष्या भरा विचार।
चन्द कागज़ के टुकड़ों के पीछे, भाग रहा इंसान।।
रिश्तों का भी खून करे वो, अपने अपनों को लाड़वाये।
ये चन्द कागज़ टुकड़े, इंसानों से क्या-क्या करवाये।।
अपनों को वो दूर करे, गैरों को रख्खे पास।
चन्द रुपये के ख़ातिर कितना, गिर गया इंसान।।
इस भीड़- भाड़ की दुनिया में,मची है भागम-भाग।
ना जाने क्यों कागज़ के पीछे, भाग रहा इंसान।।
अपनों से ही वो रेस लगाये, रख ईष्या भरा विचार।
चन्द कागज़ के टुकड़ों के पीछे, भाग रहा इंसान।।
रिश्तों का भी खून करे वो, अपने अपनों को लाड़वाये।
ये चन्द कागज़ टुकड़े, इंसानों से क्या-क्या करवाये।।
अपनों को वो दूर करे, गैरों को रख्खे पास।
चन्द रुपये के ख़ातिर कितना, गिर गया इंसान।।
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