हाँ मानता हूँ कि....
गलत था मैं, तेरे काबिल ना था
तेरी मँजिलों का मैं साहिल ना था
था कुछ अपने मन का,पर सुनता था तेरी
हमसफ़र था तेरा, कोई साया ना था
साथ देता था मैं, कभी भागा ना था
मैं था गर्दिशों में पर कभी हारा ना था
तेरी चोट का मैं ही मरहम तो था
तेरे साथ बाँटा अपना हर दर्द-गम था
तेरे सफ़र का कोई राही ही था।
गलत था मैं, तेरे काबिल ना था
तेरी मँजिलों का मैं साहिल ना था
था कुछ अपने मन का,पर सुनता था तेरी
हमसफ़र था तेरा, कोई साया ना था
साथ देता था मैं, कभी भागा ना था
मैं था गर्दिशों में पर कभी हारा ना था
तेरी चोट का मैं ही मरहम तो था
तेरे साथ बाँटा अपना हर दर्द-गम था
तेरे सफ़र का कोई राही ही था।
हाँ मानता हूँ कि....
गलत था मैं, तेरे काबिल ना था
तेरी मँजिलो का मैं साहिल ना था
गलत था मैं, तेरे काबिल ना था
तेरी मँजिलो का मैं साहिल ना था
था बहुत ही गलत, पर तुझको तोड़ा तो नही
बीच रास्ते में ला कर, हाँथ छोड़ा तो नही
फिर तेरा मुझे छोड़ जाना बता कहा तक सही था
हाँ शायद गलत था मैं ...तेरे काबिल ना था।।
बीच रास्ते में ला कर, हाँथ छोड़ा तो नही
फिर तेरा मुझे छोड़ जाना बता कहा तक सही था
हाँ शायद गलत था मैं ...तेरे काबिल ना था।।
@✍️शालिनी गुप्ता
DOORI KA EHSAAS
No comments:
Post a Comment