नुमाइश-ए-अदब मिरी तहज़ीब में नही
इज्ज़त भी हम दिल से दिया करते है।
और शरीफ़ जो बन के बैठे है अपने रुतबे में
कोठो भी उनके बदौलत ही चला करते है।।
रख कर नियत-ए-अस्क़ाम वो अपनी,
कमजोरों के अस्मत पर वार करते हैं।
और रखते है अपने बहन,बेटियों को परदे में,
अपने आबरू की ऐसे परवाह किया करते है।।
इल्म रखते है वो अपने ना-पाक कर्मो का,
ना जाने क्यूँ जान कर अंजान बने फ़िरते है।
इश्तियाक़ वो रखते है अपनी सौहरात का,
और इत्तिहाम लाचारों पर मढ़ा करते है।।
©® Shalini Gupta
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