Ye Nigahen Ab Tumhe Talaash Nhi karti - DOORI KA EHSAAS

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Thursday, August 9, 2018

Ye Nigahen Ab Tumhe Talaash Nhi karti



सूरज अपना प्रकाश पृथ्वी से वापिस ले रहा है और चाँद अपनी चाँदनी को बड़ी ही आहिस्ता-आहिस्ता से चारो तरफ फैला रहा है। इन ठंडी-ठंडी हवाओं ने तो एक अज़ब सा माहौल बना रक्खा है। एक अज़ीब सी ख़ामोशी बिखरी पड़ी है चारो तरफ़। और मेरे मन में ख्यालों के बाँध मानों टूट से गए हो और ख़्याल उमड़-उमड़ कर उनमे से बह रहे हों। और वो ख्याल तो तुम्हारे ही हैं, हाँ तुम्हारे....आज भी याद है मुझे जब तुम मुझे अपनी बेइन्तहां मोहब्बत के बाद अकेला छोड़ के चली गयी थी। पता है जब तुम्हारे जाने का ग़म मेरे सहने की हद्द को तोड़ देता तो मैं फिर अपने बेज़ान हुए जिस्म को छोड़ देने के लिए ना जाने क्या-क्या पागलपन कर जाता था। पर मौत नही आती थी मुझे, हाँ वो अलग बात है कि मैं तिल-तिल कर मरता रहता हर पल। और पता है जब अकेले में होता तो तुम्हारी कल्पना कर तुमसे बातें करता था। रात में सोते हुए अपनी बाहें फैला देता जैसा कि तुमको मेरे हाँथ पर सिर रख कर सोने की आदत थी। तो कभी-कभी खुद के हाँथो से ही अपने माथे को सहला लेता जैसा कि तुम किया करती थी अपना प्यार जताने के लिए। खाँसी आने पर लौंग फ्राई कर के पॉकेट में रख लेता और खाता रहता ये सोच कर तुम होती तो यही करती। कितना कुछ था दरमियाँ हमारे और कुछ भी नही रहा, वो भी इसलिए कि तुमने अपने प्यार के बादल को मुझ पर बरसाना छोड़ दिया। और अब बस इस ज़िन्दगी में पतझड़ के सिवा कुछ नही बचा। ज़्याद वक़्त तो नही गुज़रा है तुझसे अगलात को, पर मैंने इक-इक पल सदियों के जैसे गुज़ारा हैं तुम्हारे दूर होने के बाद। हर इक तन्हाई के पल हो, या भीड़-भाड़ मेरी निगाहें तो बस तुमको ही ढूँढती रहती थी। मेरा हाँथ तुम्हारे हाँथ के सहारे को तालाशता रहता और जब इसे वो सहारा नहीं मिलता तो ये अपनी उँगलियों को समेट कर अपने पैंट की पॉकेट में डाल लेता। देखो, कितना कुछ बदल गया था एक तेरे ना होने से। पर आज थोड़ा ही सही मैं संभल गया हूँ, अब ये निगाहें किसी की तलाश नही करती। अब मैं तुम्हारा इंतज़ार नही करता। और मैंने अपने ख़्वाबों के बाँध को फिर से बाँध लिया है, हाँ वो अलग बात है कि कभी-कभी ये बाँध कमज़ोर हो जाते है और उनमें से तुम्हारी यादें रिस-रिस कर आ जाती है। एक दिन देखना तुम्हारा ये निलिश बिल्कुल ही बदल जायेगा, पूरी तरह बदल जायेगा....
     
          तड़पाती है, तरसाती हैं,...
           दीवाना सा कर जाती हैं
           यादों से कह दो
            याद क्यूँ आती हैं,
             याद क्यूँ आती हैं"


©® Shalini Gupta
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