"समाज, शर्म, समझौता" ये तीन ऐसे शब्द है जो एक लड़की की ज़िन्दगी के मायने बदल देते हैं। उसे बचपन से ही ये समझाया जाता है कि समाज के अनुसार चलना चाहिए। वो काम कभी नही करना चाहिए जिससे की चार लोग परिवार के मान सम्मान पर अँगुली उठाये। और मुझे तो समझ ही नही आया ये चार लोग हैं कौन? और इन्ही के बीच शुरू होता है उनके जीवन का सफ़र। अब अगर समाज उसके पहनावे ओढावे से ये तय करता है कि वो लड़की कैसी है अगर उसने शॉर्ट्स पहन रखे है, नाईट शिफ्ट जॉब और रफ टफ लाइफ स्टाइल और लड़कों के साथ है तो उसको ये चरित्रहीन का सर्टिफिक्ट दे दिया जाता है। एक नज़र में उनको इतना अनुभव हो जाता है कि अपनी गिरी हुई सोच का प्रमाण ये उसी वक़्त दे देते हैं कि उनकी सोच कितनी गिरी हुई है।
इतनी बड़ी हो गयी हो और शॉर्ट्स पहनती हो? लड़कों के साथ घूमती हो ? ठेले के पास खड़े हो कर गोलगप्पे खाती हो? बीच सड़क पर इतनी तेजी से क्यों हँसती हो? कुर्ती पर दुपट्टा क्यों नही लेती हो?
बाइक चलाती हो स्कूटी क्यों नही? और ना जाने क्या- क्या। लगता है सारे शर्म का ठेका लड़कियों ने ले रखा है। अगर लड़का हॉफ पैंट पहन के बाहर गया तो गर्मी है चलता है, और लड़कियाँ शार्ट पहनले तो, हे भगवान! शर्म नाम की चीज ही नही है बस जितना पैर दिखा रही वही पर सारी हवा लग जायेगी इतनी भी क्या गर्मी। और उनकी मानसिकता दिख जाती है जो उस लड़की के शॉर्ट से भी छोटी होती हैं।
किसी लड़की ने अगर कुछ अलग करने का सोच लिया तो जैसे उसे सिलाई, बुनाई, कढ़ाई और घर के कामों में दिलचस्पी नही है और वो एक्टिंग, मॉडलिंग, जॉर्नलिस्ट बनना चाहे तो लोग क्या कहेंगे-" लड़कियों के लिए बस टीचर की नौकरी अच्छी होती है ये सब उनके लिए सही नही है।" और फिर उसको अपने सपनो से भी समझौता करना पड़ता है ना चाहते हुए भी वो वही करती है जो नही करना चाहती। ऐसा सोचने वालो के कुछ नही कहा जा सकता क्योंकि वो लड़कियों को हमेशा कमजोर समझते है जबकि उनकी ऐसी सोच रखना उनकी कमजोरी बन चुकी होती है।
लड़कियो के जिंदगी में एक ऐसा भी वक़्त आता है कि अगर वो अपने मन का कुछ करना चाहे तो उन्हें ये कह कर रोक दिया जाता है है कि वो अभी छोटी है, और अगले ही पल ये टोक के उनको रात में बाहर नही निकलने दिया जाता क्यों की वो बड़ी हो गयी है।
ना जाने क्या होगा.....क्या कभी लड़कियाँ अपनी मर्जी से अपनी ज़िन्दगी जी पाएँगी। उन्हें आज़ादी तो मिलती है, पर उन आज़ादी में भी पाबंदियाँ रहती हैं।कुछ लोगो की इन दकियानूसी बातों में आ कर अपने सपनो का गला घोंट देती हैं। और इन सब के बावजूद भी कुछ लड़कियों के सपनों की उड़ाने भर ही लेती हैं वो जानती हैं सफलता मिलने पर उन चार लोगो के मुँह बन हो जाएँगे।
" मुश्किलें कहाँ आसान होती हैं...
हौसलों में ही उड़ान होती हैं...!"
इतनी बड़ी हो गयी हो और शॉर्ट्स पहनती हो? लड़कों के साथ घूमती हो ? ठेले के पास खड़े हो कर गोलगप्पे खाती हो? बीच सड़क पर इतनी तेजी से क्यों हँसती हो? कुर्ती पर दुपट्टा क्यों नही लेती हो?
बाइक चलाती हो स्कूटी क्यों नही? और ना जाने क्या- क्या। लगता है सारे शर्म का ठेका लड़कियों ने ले रखा है। अगर लड़का हॉफ पैंट पहन के बाहर गया तो गर्मी है चलता है, और लड़कियाँ शार्ट पहनले तो, हे भगवान! शर्म नाम की चीज ही नही है बस जितना पैर दिखा रही वही पर सारी हवा लग जायेगी इतनी भी क्या गर्मी। और उनकी मानसिकता दिख जाती है जो उस लड़की के शॉर्ट से भी छोटी होती हैं।
किसी लड़की ने अगर कुछ अलग करने का सोच लिया तो जैसे उसे सिलाई, बुनाई, कढ़ाई और घर के कामों में दिलचस्पी नही है और वो एक्टिंग, मॉडलिंग, जॉर्नलिस्ट बनना चाहे तो लोग क्या कहेंगे-" लड़कियों के लिए बस टीचर की नौकरी अच्छी होती है ये सब उनके लिए सही नही है।" और फिर उसको अपने सपनो से भी समझौता करना पड़ता है ना चाहते हुए भी वो वही करती है जो नही करना चाहती। ऐसा सोचने वालो के कुछ नही कहा जा सकता क्योंकि वो लड़कियों को हमेशा कमजोर समझते है जबकि उनकी ऐसी सोच रखना उनकी कमजोरी बन चुकी होती है।
लड़कियो के जिंदगी में एक ऐसा भी वक़्त आता है कि अगर वो अपने मन का कुछ करना चाहे तो उन्हें ये कह कर रोक दिया जाता है है कि वो अभी छोटी है, और अगले ही पल ये टोक के उनको रात में बाहर नही निकलने दिया जाता क्यों की वो बड़ी हो गयी है।
ना जाने क्या होगा.....क्या कभी लड़कियाँ अपनी मर्जी से अपनी ज़िन्दगी जी पाएँगी। उन्हें आज़ादी तो मिलती है, पर उन आज़ादी में भी पाबंदियाँ रहती हैं।कुछ लोगो की इन दकियानूसी बातों में आ कर अपने सपनो का गला घोंट देती हैं। और इन सब के बावजूद भी कुछ लड़कियों के सपनों की उड़ाने भर ही लेती हैं वो जानती हैं सफलता मिलने पर उन चार लोगो के मुँह बन हो जाएँगे।
" मुश्किलें कहाँ आसान होती हैं...
हौसलों में ही उड़ान होती हैं...!"
©® Shalini Gupta
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