"अच्छा नही लगता"
अब तुझ पर हक़ अपना जताना अच्छा नही लगता।
क्योंकि तेरा किसी और को टूट के चाहना अच्छा नही लगता।।
मैं तो तन्हा मुक़म्मल भी हो गया हूँ एक तेरी याद के सहारे।
पर अब मेरा तुम्हारे यादों में अक़्सर आ जाना अच्छा नही लगता।।
मिलने को तो मिल लेता हूँ मैं हर किसी से मुस्कुरा कर।
हर बार झूठी मुस्कान के साथ लोगो के सामने आना अच्छा नही लगता।।
मैंने छोड़ भी दिया है ये उम्मीद की तुम आओगी मुझसे मिलने।
पर तेरा किसी और के आग़ोश में हो जाना अच्छा नही लगता।।
हर बार मोहब्बत के बदले मिले मोहब्बत ये ज़रूरी तो नही।
पर हर बार मेरा ही मोहब्बत में शिकस्त खानाअच्छा नही लगता।।
©® Shalini Gupta
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Blog-Doori Ka Ehsaas
helloooo
ReplyDeleteShalini
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